[ ऋषि - विभ्राट् सौर्य । देवता-सूर्य । छन्द -जगती ,आस्तारपंक्ति ।]
10474
विभ्राड् बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविह्रुतम् ।
वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजा:पुपोष पुरुधा वि राजति॥1॥
भानु - भाव के ही भूखे है हमें दीर्घ - जीवन देते है ।
पवन - देव के माध्यम से वे हम सबकी रक्षा करते हैं ॥1॥
10475
विभ्राड् बृहत्सुभृतं वाजसातमं धर्मन्दिवो धरुणे सत्यमर्पितम् ।
अमित्रहा वृत्रहा दस्युहतमं ज्योतिर्जज्ञे असुरहा सपत्नहा ॥2॥
हे आदित्य अन्न - जल देना जिससे बलशाली बन जायें ।
मन से तमस दूर कर देना हम प्रकाश - पुञ्ज कहलायें ॥2॥
10476
इदं श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरुत्तमं विश्वजिध्दनजिदुच्यते बृहत् ।
विश्वभ्राड् भ्राजो महि सूर्यो दृश उरु पप्रथे सह ओजो अच्युतम्॥3॥
तुम्हीं प्रतिष्ठित दुनियॉं भर में धन - वैभव के तुम्हीं प्रदाता ।
तुम्हीं ओज को धारण करते तुम अविनाशी भाग्य-विधाता ॥3॥
10477
विभ्राजञ्ज्योतिषा स्व1रगच्छो रोचनं दिवः ।
येनेमा विश्वा भुवनान्याभृता विश्वकर्मणा विश्वदेव्यावता ॥4॥
प्रभु तुम दिव्य - लोक गामी हो विश्व तुम्हीं से आलोकित है ।
तुम संरक्षक हो दुनियॉं के जग तुमसे पोषित पुलकित है ॥4॥
10474
विभ्राड् बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविह्रुतम् ।
वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजा:पुपोष पुरुधा वि राजति॥1॥
भानु - भाव के ही भूखे है हमें दीर्घ - जीवन देते है ।
पवन - देव के माध्यम से वे हम सबकी रक्षा करते हैं ॥1॥
10475
विभ्राड् बृहत्सुभृतं वाजसातमं धर्मन्दिवो धरुणे सत्यमर्पितम् ।
अमित्रहा वृत्रहा दस्युहतमं ज्योतिर्जज्ञे असुरहा सपत्नहा ॥2॥
हे आदित्य अन्न - जल देना जिससे बलशाली बन जायें ।
मन से तमस दूर कर देना हम प्रकाश - पुञ्ज कहलायें ॥2॥
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इदं श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरुत्तमं विश्वजिध्दनजिदुच्यते बृहत् ।
विश्वभ्राड् भ्राजो महि सूर्यो दृश उरु पप्रथे सह ओजो अच्युतम्॥3॥
तुम्हीं प्रतिष्ठित दुनियॉं भर में धन - वैभव के तुम्हीं प्रदाता ।
तुम्हीं ओज को धारण करते तुम अविनाशी भाग्य-विधाता ॥3॥
10477
विभ्राजञ्ज्योतिषा स्व1रगच्छो रोचनं दिवः ।
येनेमा विश्वा भुवनान्याभृता विश्वकर्मणा विश्वदेव्यावता ॥4॥
प्रभु तुम दिव्य - लोक गामी हो विश्व तुम्हीं से आलोकित है ।
तुम संरक्षक हो दुनियॉं के जग तुमसे पोषित पुलकित है ॥4॥
ऊर्जा और गतिमयता का एकमात्र स्रोत
ReplyDeleteहे आदित्य अन्न - जल देना जिससे बलशाली बन जायें ।
ReplyDeleteमन से तमस दूर कर देना हम प्रकाश - पुञ्ज कहलायें ॥2॥
कितनी ओजस्वी प्रार्थना..आभार !