Sunday, 20 October 2013

सूक्त- 165

 [ऋषि- कपोत नैऋर्त ।देवता-विश्वेदेवा ।छन्द -त्रिष्टुप ।]

10452
देवा:   कपोत  इषितो  यदिच्छन्दूतो  नि ऋर्त्या    इदमाजगाम ।
तस्मा अर्चाम कृणवाम निष्कृतिं शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ॥1॥

विघ्न   हरो   हरि   सुख   बरसाओ   बाधाओं   को   दूर  भगाओ ।
हविष्यान्न  दें  अग्नि -  देव  को  वेद - मंत्र  सब मिल कर गाओ ॥1॥

10453
शिवः   कपोत   इषितो   नो   अस्त्वनागा   देवा:   शकुनो  गृहेषु ।
अग्निर्हि  विप्रो  जुषतां  हविर्न:  परि  हेतिः  पक्षिणी   नो  वृणक्तु ॥2॥

हर  घर  फूले  फले  प्रेम  से  अग्नि - देव  की  कृपा - दृष्टि  हो ।
शुभ - कपोत - ध्वनि  घर  में  गूँजे  यज्ञ - धूम  से  भरी  सृष्टि हो ॥2॥

10454
हेतिः  पक्षिणी  न  दभात्यस्मानाष्ट्रयां  पदं  कृणुते  अग्निधाने ।
शं  नो  गोभ्यश्च  पुरुषेभ्यश्चास्तु  मा  नो  हिंसीदिह देवा: कपोतः ॥3॥

हे अग्नि- देव  सब  विघ्न  हरो  तुम  गौ - मॉं की सदा सुरक्षा हो ।
गो- माता  हरी  वनस्पति  खाए  गौ- माता  से जीवन की रक्षा हो ॥3॥

10455
यदुलूको     वदति    मोघमेतद्यत्कपोतः   पदमग्नौ   कृणोति ।
यस्य  दूतः  प्रहित  एष   एतत्तस्मै  यमाय  नमो  अस्तु   मृत्यवे ॥4॥

उलूक - ध्वनि  मंगल - कारी  है  वह  लक्ष्मी  जी  का  वाहन है ।
कपोत   शान्ति - दूत   कहलाता  श्वेत - शान्ति  का  आवाहन  है ॥4॥

10456
ऋचा   कपोतं   नुदत   प्रणोदमिषं   मदन्तः  परि   गां  नयध्वम् ।
संयोपयन्तो  दुरितानि   विश्वा  हित्वा  न  ऊर्जं  प्र  पतात्पतिष्ठः ॥5॥

मंत्र - पूत  हो  घर  हम  सबका  गो - माता  की मंगल - ध्वनि हो ।
कपोत - शान्ति - दूत हो घर में घर अपना  शान्ति -निकेतन हो ॥5॥    


 

3 comments:

  1. बेहतरीन संग्रहणीय

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  2. बहुत सुंदर! आभार!

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  3. शान्ति, प्रेम से अनुप्राणित हो,
    एक व्यवस्था संचालित हो।

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