[ऋषि- कपोत नैऋर्त ।देवता-विश्वेदेवा ।छन्द -त्रिष्टुप ।]
10452
देवा: कपोत इषितो यदिच्छन्दूतो नि ऋर्त्या इदमाजगाम ।
तस्मा अर्चाम कृणवाम निष्कृतिं शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ॥1॥
विघ्न हरो हरि सुख बरसाओ बाधाओं को दूर भगाओ ।
हविष्यान्न दें अग्नि - देव को वेद - मंत्र सब मिल कर गाओ ॥1॥
10453
शिवः कपोत इषितो नो अस्त्वनागा देवा: शकुनो गृहेषु ।
अग्निर्हि विप्रो जुषतां हविर्न: परि हेतिः पक्षिणी नो वृणक्तु ॥2॥
हर घर फूले फले प्रेम से अग्नि - देव की कृपा - दृष्टि हो ।
शुभ - कपोत - ध्वनि घर में गूँजे यज्ञ - धूम से भरी सृष्टि हो ॥2॥
10454
हेतिः पक्षिणी न दभात्यस्मानाष्ट्रयां पदं कृणुते अग्निधाने ।
शं नो गोभ्यश्च पुरुषेभ्यश्चास्तु मा नो हिंसीदिह देवा: कपोतः ॥3॥
हे अग्नि- देव सब विघ्न हरो तुम गौ - मॉं की सदा सुरक्षा हो ।
गो- माता हरी वनस्पति खाए गौ- माता से जीवन की रक्षा हो ॥3॥
10455
यदुलूको वदति मोघमेतद्यत्कपोतः पदमग्नौ कृणोति ।
यस्य दूतः प्रहित एष एतत्तस्मै यमाय नमो अस्तु मृत्यवे ॥4॥
उलूक - ध्वनि मंगल - कारी है वह लक्ष्मी जी का वाहन है ।
कपोत शान्ति - दूत कहलाता श्वेत - शान्ति का आवाहन है ॥4॥
10456
ऋचा कपोतं नुदत प्रणोदमिषं मदन्तः परि गां नयध्वम् ।
संयोपयन्तो दुरितानि विश्वा हित्वा न ऊर्जं प्र पतात्पतिष्ठः ॥5॥
मंत्र - पूत हो घर हम सबका गो - माता की मंगल - ध्वनि हो ।
कपोत - शान्ति - दूत हो घर में घर अपना शान्ति -निकेतन हो ॥5॥
10452
देवा: कपोत इषितो यदिच्छन्दूतो नि ऋर्त्या इदमाजगाम ।
तस्मा अर्चाम कृणवाम निष्कृतिं शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ॥1॥
विघ्न हरो हरि सुख बरसाओ बाधाओं को दूर भगाओ ।
हविष्यान्न दें अग्नि - देव को वेद - मंत्र सब मिल कर गाओ ॥1॥
10453
शिवः कपोत इषितो नो अस्त्वनागा देवा: शकुनो गृहेषु ।
अग्निर्हि विप्रो जुषतां हविर्न: परि हेतिः पक्षिणी नो वृणक्तु ॥2॥
हर घर फूले फले प्रेम से अग्नि - देव की कृपा - दृष्टि हो ।
शुभ - कपोत - ध्वनि घर में गूँजे यज्ञ - धूम से भरी सृष्टि हो ॥2॥
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हेतिः पक्षिणी न दभात्यस्मानाष्ट्रयां पदं कृणुते अग्निधाने ।
शं नो गोभ्यश्च पुरुषेभ्यश्चास्तु मा नो हिंसीदिह देवा: कपोतः ॥3॥
हे अग्नि- देव सब विघ्न हरो तुम गौ - मॉं की सदा सुरक्षा हो ।
गो- माता हरी वनस्पति खाए गौ- माता से जीवन की रक्षा हो ॥3॥
10455
यदुलूको वदति मोघमेतद्यत्कपोतः पदमग्नौ कृणोति ।
यस्य दूतः प्रहित एष एतत्तस्मै यमाय नमो अस्तु मृत्यवे ॥4॥
उलूक - ध्वनि मंगल - कारी है वह लक्ष्मी जी का वाहन है ।
कपोत शान्ति - दूत कहलाता श्वेत - शान्ति का आवाहन है ॥4॥
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ऋचा कपोतं नुदत प्रणोदमिषं मदन्तः परि गां नयध्वम् ।
संयोपयन्तो दुरितानि विश्वा हित्वा न ऊर्जं प्र पतात्पतिष्ठः ॥5॥
मंत्र - पूत हो घर हम सबका गो - माता की मंगल - ध्वनि हो ।
कपोत - शान्ति - दूत हो घर में घर अपना शान्ति -निकेतन हो ॥5॥
बेहतरीन संग्रहणीय
ReplyDeleteबहुत सुंदर! आभार!
ReplyDeleteशान्ति, प्रेम से अनुप्राणित हो,
ReplyDeleteएक व्यवस्था संचालित हो।