[ ऋषि -अधमर्षण माधुच्छन्दस । देवता - भाववृत्त । छन्द -अनुष्टुप । ]
10546
ऋतं च सत्यं चाभीध्दात्तपसोSध्यजायत ।
ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः ॥1॥
मूल - तत्व हमने पाया है महा तपश्चर्या के बल पर ।
सृष्टि-काल आरंभ हुआ सागर आया अबाध जल लेकर ॥1॥
10547
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ॥2॥
सागर से संवत्सर आया फिर दिन आया आई रात ।
काल-चक्र चल पडा अनवरत कुछ ही क्षण में अकस्मात ॥2॥
10548
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ॥3॥
सूर्य - चन्द्र चमके नभ पर आकाश और धरती चहकी ।
आत्म-तत्व पहले जैसा था अंतरिक्ष की महिमा महकी ॥3॥
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
10546
ऋतं च सत्यं चाभीध्दात्तपसोSध्यजायत ।
ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः ॥1॥
मूल - तत्व हमने पाया है महा तपश्चर्या के बल पर ।
सृष्टि-काल आरंभ हुआ सागर आया अबाध जल लेकर ॥1॥
10547
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ॥2॥
सागर से संवत्सर आया फिर दिन आया आई रात ।
काल-चक्र चल पडा अनवरत कुछ ही क्षण में अकस्मात ॥2॥
10548
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ॥3॥
सूर्य - चन्द्र चमके नभ पर आकाश और धरती चहकी ।
आत्म-तत्व पहले जैसा था अंतरिक्ष की महिमा महकी ॥3॥
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
बहुत सुंदर अनुवाद ..!
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
सुंदर भावानुवाद ......
ReplyDeleteआभार इस वेद प्रस्तुति के लिए..
ReplyDeleteअद्भुत कार्य, हिन्दी की सरलता में प्रस्तुत वेद के रहस्य।
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
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