Wednesday, 9 October 2013

सूक्त- 190

[ ऋषि -अधमर्षण माधुच्छन्दस । देवता - भाववृत्त । छन्द -अनुष्टुप । ] 

10546
ऋतं च सत्यं चाभीध्दात्तपसोSध्यजायत ।
ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः ॥1॥

मूल - तत्व  हमने  पाया  है महा तपश्चर्या के बल पर ।
सृष्टि-काल आरंभ हुआ सागर आया अबाध जल लेकर ॥1॥

10547
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ॥2॥

सागर  से संवत्सर आया  फिर  दिन  आया  आई  रात ।
काल-चक्र चल पडा अनवरत कुछ ही क्षण में अकस्मात ॥2॥

10548
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ॥3॥

सूर्य - चन्द्र चमके नभ पर आकाश और धरती चहकी ।
आत्म-तत्व पहले जैसा था अंतरिक्ष की महिमा महकी ॥3॥

शकुन्तला शर्मा , भिलाई  [ छ. ग. ] 

5 comments:

  1. आभार इस वेद प्रस्तुति के लिए..

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  2. अद्भुत कार्य, हिन्दी की सरलता में प्रस्तुत वेद के रहस्य।

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  3. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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