[ऋषि- केतु आग्नेय । देवता- अग्नि । छन्द- गायत्री । ]
10404
अग्निं हिन्वन्तु नो धियः सप्तिमाशुमिवाजिषु ।
तेन जेष्म धनन्धनम् ॥1॥
हे अग्नि-देव तुम ही प्रेरक हो जीवन यह गति से भर दो ।
सब कारज हो सिध्द हमारा मन में शुभ-शुभ विचार भर दो ॥1॥
10405
यया गा आकरामहे सेनयाग्ने तवोत्या ।
तां नो हिन्व मधत्तये ॥2॥
विघ्न-विनाशक तुम्हीं हो प्रभुवर सदा सुरक्षित हो जीवन ।
ज्ञान-वान हम बनें साथ में यश-वैभव हो धन - यौवन ॥2॥
10406
आग्ने स्थूरं रयिं भर पृथुं गोमन्तमश्विनम् ।
अङ्धि खं वर्तया पणिम् ॥3॥
हे अग्नि-देव पशु-धन हो घर में वैभव-लक्ष्मी का हो वरदान ।
संतुलित वेग से जल बरसे हर घर को मिले अन्न का दान॥3॥
10407
अग्ने नक्षत्रमजरमा सूर्यं रोहयो दिवि ।
दधज्ज्योतिर्जनेभ्यः ॥4॥
हे प्रकाश-पुञ्ज हे पावक तुम ही तो हो आलोक-वितान ।
मन से तमस हटाओ प्रभुवर दिव्य-ज्योति का दे दो दान ॥4॥
10408
अग्ने केतुर्विशामसि प्रेष्ठः श्रेष्ठ उपस्थसत् ।
बोधा स्तोत्रे वयो दधत् ॥5॥
हे अग्नि-देव तुम ज्ञान - प्रदाता अन्तः-आलोकित करते हो।
हम सब को पाथेय चाहिए आश्रय तुम्हीं दिया करते हो ॥5॥
10404
अग्निं हिन्वन्तु नो धियः सप्तिमाशुमिवाजिषु ।
तेन जेष्म धनन्धनम् ॥1॥
हे अग्नि-देव तुम ही प्रेरक हो जीवन यह गति से भर दो ।
सब कारज हो सिध्द हमारा मन में शुभ-शुभ विचार भर दो ॥1॥
10405
यया गा आकरामहे सेनयाग्ने तवोत्या ।
तां नो हिन्व मधत्तये ॥2॥
विघ्न-विनाशक तुम्हीं हो प्रभुवर सदा सुरक्षित हो जीवन ।
ज्ञान-वान हम बनें साथ में यश-वैभव हो धन - यौवन ॥2॥
10406
आग्ने स्थूरं रयिं भर पृथुं गोमन्तमश्विनम् ।
अङ्धि खं वर्तया पणिम् ॥3॥
हे अग्नि-देव पशु-धन हो घर में वैभव-लक्ष्मी का हो वरदान ।
संतुलित वेग से जल बरसे हर घर को मिले अन्न का दान॥3॥
10407
अग्ने नक्षत्रमजरमा सूर्यं रोहयो दिवि ।
दधज्ज्योतिर्जनेभ्यः ॥4॥
हे प्रकाश-पुञ्ज हे पावक तुम ही तो हो आलोक-वितान ।
मन से तमस हटाओ प्रभुवर दिव्य-ज्योति का दे दो दान ॥4॥
10408
अग्ने केतुर्विशामसि प्रेष्ठः श्रेष्ठ उपस्थसत् ।
बोधा स्तोत्रे वयो दधत् ॥5॥
हे अग्नि-देव तुम ज्ञान - प्रदाता अन्तः-आलोकित करते हो।
हम सब को पाथेय चाहिए आश्रय तुम्हीं दिया करते हो ॥5॥
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