[ ऋषि - अरिष्टनेमि तार्क्ष्य। देवता- तार्क्ष्य ।छन्द -त्रिष्टुप । ]
10508
त्यमू षु वाजिनं देवजूतं सहावानं तरुतारं रथानाम् ।
अरिष्टनेमिं पृतनाजमाशुं स्वस्तये तार्क्ष्यमिहा हुवेम ॥1॥
उस गरुड-देव का आवाहन है जो देवों से सेवित बलशाली है ।
संग्राम में विजय दिलाने वाली ऊँची-उडान भरने वाली है ॥1॥
10509
इन्द्रस्येव रातिमाजोहुवाना: स्वस्तये नावमिवा रुहेम ।
उर्वी न पृथ्वी बहुले गभीरे मा वामेतौ मा परेतौ रिषाम ॥2॥
इन्द्र-देव सम वेग है उसका पर जन-हित है अपना ध्येय ।
दुर्गम- सागर में नाव की तरह उसका अवलंबन है श्रेय ॥2॥
10510
सद्यश्चिद्यः शवसा पञ्च कृष्टीः सूर्य इव ज्योतिषापस्ततान ।
सहस्त्रसा:शतसा अस्य रंहिर्न स्मा वरन्ते युवतिं न शर्याम्॥3॥
जैसे सूर्य - देव जल देते वह शक्ति हमें वैभव देगी ।
धनु से छूटे तीर- सदृश तार्क्ष्य - गति फिर रुक न सकेगी ॥3॥
10508
त्यमू षु वाजिनं देवजूतं सहावानं तरुतारं रथानाम् ।
अरिष्टनेमिं पृतनाजमाशुं स्वस्तये तार्क्ष्यमिहा हुवेम ॥1॥
उस गरुड-देव का आवाहन है जो देवों से सेवित बलशाली है ।
संग्राम में विजय दिलाने वाली ऊँची-उडान भरने वाली है ॥1॥
10509
इन्द्रस्येव रातिमाजोहुवाना: स्वस्तये नावमिवा रुहेम ।
उर्वी न पृथ्वी बहुले गभीरे मा वामेतौ मा परेतौ रिषाम ॥2॥
इन्द्र-देव सम वेग है उसका पर जन-हित है अपना ध्येय ।
दुर्गम- सागर में नाव की तरह उसका अवलंबन है श्रेय ॥2॥
10510
सद्यश्चिद्यः शवसा पञ्च कृष्टीः सूर्य इव ज्योतिषापस्ततान ।
सहस्त्रसा:शतसा अस्य रंहिर्न स्मा वरन्ते युवतिं न शर्याम्॥3॥
जैसे सूर्य - देव जल देते वह शक्ति हमें वैभव देगी ।
धनु से छूटे तीर- सदृश तार्क्ष्य - गति फिर रुक न सकेगी ॥3॥
महत खग,
ReplyDeleteअथक नभ।
बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनाए...!
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