[ ऋषि- श्रध्दा कामायनी । देवता- श्रध्दा । छन्द - अनुष्टुप ।]
10379
श्रध्दयाग्निः समिध्यते श्रध्दया हूयते हविः ।
श्रध्दां भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि ॥1॥
श्रध्दा विभूति में सर्व- श्रेष्ठ है उसकी अपनी गरिमा होती है ।
श्रध्दा देवों के मस्तक पर सादर विराजमान होती है ॥1॥
10380
प्रियं श्रध्दे ददतः प्रियं श्रध्दे दिदासतः ।
प्रियं भोजेषु यज्वस्विदं म उदितं कृधि ॥2॥
जिसके मन में श्रध्दा होती है उसको सब कुछ मिल जाता है ।
वह सुख से जीवन यापन करता जग में यश-वैभव पाता है ॥2॥
10381
यथा देवा असुरेषु श्रध्दामुग्रेषु चक्रिरे ।
एवं भोजेषु यज्वस्वस्माकमुदितं कृधि ॥3॥
भीतर- बाहर के असुरों से हे श्रध्दे अब तुम्हीं बचाओ ।
दुष्ट- दमन अति आवश्यक है संत-जनों को सबल बनाओ ॥3॥
10382
श्रध्दां देवा यजमाना वायुगोपा उपासते ।
श्रध्दां हृदय्य1याकूत्या श्रध्दया विन्दते वसु॥4॥
पवन-देव के संरक्षण में हम तेरी उपासना करते हैं ।
संकल्प विचरता है जब मन में तव सामीप्य ग्रहण करते हैं॥4॥
10383
श्रध्दां प्रातर्हवामहे श्रध्दां मध्यंदिनं परि ।
श्रध्दां सूर्यस्य निम्रुचि श्रध्दे श्रध्दापयेह नः॥5॥
भोर में श्रध्दा का आवाहन दोपहर में आवाहन करते हैं ।
हे श्रध्दे हम श्रध्दा-वान बनें संध्या में भी आवाहन करते हैं ॥5॥
10379
श्रध्दयाग्निः समिध्यते श्रध्दया हूयते हविः ।
श्रध्दां भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि ॥1॥
श्रध्दा विभूति में सर्व- श्रेष्ठ है उसकी अपनी गरिमा होती है ।
श्रध्दा देवों के मस्तक पर सादर विराजमान होती है ॥1॥
10380
प्रियं श्रध्दे ददतः प्रियं श्रध्दे दिदासतः ।
प्रियं भोजेषु यज्वस्विदं म उदितं कृधि ॥2॥
जिसके मन में श्रध्दा होती है उसको सब कुछ मिल जाता है ।
वह सुख से जीवन यापन करता जग में यश-वैभव पाता है ॥2॥
10381
यथा देवा असुरेषु श्रध्दामुग्रेषु चक्रिरे ।
एवं भोजेषु यज्वस्वस्माकमुदितं कृधि ॥3॥
भीतर- बाहर के असुरों से हे श्रध्दे अब तुम्हीं बचाओ ।
दुष्ट- दमन अति आवश्यक है संत-जनों को सबल बनाओ ॥3॥
10382
श्रध्दां देवा यजमाना वायुगोपा उपासते ।
श्रध्दां हृदय्य1याकूत्या श्रध्दया विन्दते वसु॥4॥
पवन-देव के संरक्षण में हम तेरी उपासना करते हैं ।
संकल्प विचरता है जब मन में तव सामीप्य ग्रहण करते हैं॥4॥
10383
श्रध्दां प्रातर्हवामहे श्रध्दां मध्यंदिनं परि ।
श्रध्दां सूर्यस्य निम्रुचि श्रध्दे श्रध्दापयेह नः॥5॥
भोर में श्रध्दा का आवाहन दोपहर में आवाहन करते हैं ।
हे श्रध्दे हम श्रध्दा-वान बनें संध्या में भी आवाहन करते हैं ॥5॥
समाश्रित जीवन की अवधारणा, श्रद्धा का विशिष्ट भाव।
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