[ऋषि -सूनुरार्भव । देवता - ऋभुगण, अग्नि। छन्द-अनुष्टुप।]
10501
प्र सूनव ऋभूणां बृहन्नवन्तवृजना ।
क्षामा ये विश्वधायसोSश्न्न्धेनुं न मातरम् ॥1॥
सूर्य-रश्मि के तेज - पुत्र रस-पान कर रहे हैं धरती पर ।
जैसे बछडे गोरस पीते हैं अपनी गो-माता को धरकर ॥1॥
10502
प्र देवं देव्या धिया भरता जातवेदसम् ।
हव्या नो वक्षदानुषक् ॥2॥
अग्नि- देव के बनो उपासक उन्हें प्रेम से हविष्यान्न दो ।
अग्नि-देव को हवि अनुक्रम से देवों को अर्पित करने दो ॥2॥
10503
अयमु ष्य प्र देवयुर्होता यज्ञाय नीयते ।
रथा न योरभीवृतो घृणीवाञ्चेतति त्मना ॥3॥
अग्नि - देव ही हवि देते हैं वे स्वयं भी ग्रहण करते हैं ।
तीव्र-वेग सूरज-सम पावक हवि सभी को दिया करते हैं ॥3॥
10504
अयमग्निरुरुष्यत्यमृतादिव जन्मनः ।
सहसश्चित्सहीयान्देवो जीवातवे कृतः ॥4॥
अग्नि - देव अमृत समान हैं भय से वही बचाते हैं ।
पावक - पावन है बलशाली वे जीवन सुखद बनाते हैं ॥4॥
10501
प्र सूनव ऋभूणां बृहन्नवन्तवृजना ।
क्षामा ये विश्वधायसोSश्न्न्धेनुं न मातरम् ॥1॥
सूर्य-रश्मि के तेज - पुत्र रस-पान कर रहे हैं धरती पर ।
जैसे बछडे गोरस पीते हैं अपनी गो-माता को धरकर ॥1॥
10502
प्र देवं देव्या धिया भरता जातवेदसम् ।
हव्या नो वक्षदानुषक् ॥2॥
अग्नि- देव के बनो उपासक उन्हें प्रेम से हविष्यान्न दो ।
अग्नि-देव को हवि अनुक्रम से देवों को अर्पित करने दो ॥2॥
10503
अयमु ष्य प्र देवयुर्होता यज्ञाय नीयते ।
रथा न योरभीवृतो घृणीवाञ्चेतति त्मना ॥3॥
अग्नि - देव ही हवि देते हैं वे स्वयं भी ग्रहण करते हैं ।
तीव्र-वेग सूरज-सम पावक हवि सभी को दिया करते हैं ॥3॥
10504
अयमग्निरुरुष्यत्यमृतादिव जन्मनः ।
सहसश्चित्सहीयान्देवो जीवातवे कृतः ॥4॥
अग्नि - देव अमृत समान हैं भय से वही बचाते हैं ।
पावक - पावन है बलशाली वे जीवन सुखद बनाते हैं ॥4॥
सूर्य स्रोत इस गतिमय जग का
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