[ श्येन आग्नेय । देवता - अग्नि । छन्द - गायत्री । ]
10540
प्र नूनं जातवेदसमश्वं हिनोत वाजिनम् ।
इदं नो बर्हिरासदे ॥1॥
हे मनुज अग्नि है अन्नवान सर्वज्ञ और अति व्यापक है ।
हम सादर उन्हें बुलाते हैं उनकी उपासना आवश्यक है ॥1॥
10541
अस्य प्र जातवेदसो विप्रवीरस्य मीळहुषः।
महीमियर्मि सुष्टुतिम् ॥2॥
भक्त अग्नि की बडे प्रेम से भाव से पूजा करते हैं ।
अग्निदेव ही जल देते हैं हम कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं ॥2॥
10542
या रुचो जातवेदसो देवत्रा हव्यवाहनीः ।
ताभिर्नो यज्ञमिन्वतु ॥3॥
अग्निदेव निज मुख से समिधा औषधि मात्र ग्रहण करते हैं ।
वे अपनी ज्वाला-मुख से आहुतियों का वितरण करते हैं ॥3॥
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प्र नूनं जातवेदसमश्वं हिनोत वाजिनम् ।
इदं नो बर्हिरासदे ॥1॥
हे मनुज अग्नि है अन्नवान सर्वज्ञ और अति व्यापक है ।
हम सादर उन्हें बुलाते हैं उनकी उपासना आवश्यक है ॥1॥
10541
अस्य प्र जातवेदसो विप्रवीरस्य मीळहुषः।
महीमियर्मि सुष्टुतिम् ॥2॥
भक्त अग्नि की बडे प्रेम से भाव से पूजा करते हैं ।
अग्निदेव ही जल देते हैं हम कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं ॥2॥
10542
या रुचो जातवेदसो देवत्रा हव्यवाहनीः ।
ताभिर्नो यज्ञमिन्वतु ॥3॥
अग्निदेव निज मुख से समिधा औषधि मात्र ग्रहण करते हैं ।
वे अपनी ज्वाला-मुख से आहुतियों का वितरण करते हैं ॥3॥
अग्नि ही समस्त ऊर्जाओं का मूल है, अतः उपास्य है।
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