[ ऋषि- शास भारद्वाज । देवता- इन्द्र । छन्द- अनुष्टुप ।]
10384
शास इत्था महॉं अस्यमित्रखादो अद्भुतः ।
न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदा चन ॥1॥
हे प्रभु सौ-सौ बार नमन है शुभ-चिन्तन का दे दो वरदान ।
तुम हो अगम अगोचर प्रभुवर सबको दे दो धन और धान ॥1॥
10385
स्वस्तिदा विशस्पतिर्वृत्रहा विमृधो वशी ।
वृषेन्द्रः पुर एतु नः सोमपा अभयङ्करः ॥2॥
हम सबके पालन-हार तुम्हीं हो सदा करो सबका कल्याण ।
असुर-विनाशक हे जग-पालक कुछ तो दे दो हमें प्रमाण ॥2॥
10386
वि रक्षो वि मृधो जहि वि वृत्रस्य हनू रुज ।
वि मन्युमिन्द्र वृत्रहन्नमित्रस्याभिदासतः ॥3॥
दुष्टों को तुम्हीं दण्ड देते हो सज्जन को तुम देते मान ।
दुश्मन से रक्षा करो हमारी श्रेष्ठ गुणों का दे दो दान ॥3॥
10387
वि न इन्द्र मृधो जहि नीचा यच्छ पृतन्यतः ।
यो अस्मॉं अभिदासत्यधरं गमया तमः ॥4॥
जन्म-भूमि हमको प्यारी है गाते हैं सदा उसी का गान ।
चन्दन- सम माटी है इसकी रहे शाश्वत इसका मान ॥4॥
10388
अपेन्द्र द्विषतो मनोSप जिज्यासतो वधम् ।
वि मन्योः शर्म यच्छ वरीयो यवया वधम् ॥5॥
अहित हमारा जो करता है वह भी सुख सम्पन्न रहे ।
कभी भी कोई दुख न पाए और न कोई कष्ट सहे ॥5॥
10384
शास इत्था महॉं अस्यमित्रखादो अद्भुतः ।
न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदा चन ॥1॥
हे प्रभु सौ-सौ बार नमन है शुभ-चिन्तन का दे दो वरदान ।
तुम हो अगम अगोचर प्रभुवर सबको दे दो धन और धान ॥1॥
10385
स्वस्तिदा विशस्पतिर्वृत्रहा विमृधो वशी ।
वृषेन्द्रः पुर एतु नः सोमपा अभयङ्करः ॥2॥
हम सबके पालन-हार तुम्हीं हो सदा करो सबका कल्याण ।
असुर-विनाशक हे जग-पालक कुछ तो दे दो हमें प्रमाण ॥2॥
10386
वि रक्षो वि मृधो जहि वि वृत्रस्य हनू रुज ।
वि मन्युमिन्द्र वृत्रहन्नमित्रस्याभिदासतः ॥3॥
दुष्टों को तुम्हीं दण्ड देते हो सज्जन को तुम देते मान ।
दुश्मन से रक्षा करो हमारी श्रेष्ठ गुणों का दे दो दान ॥3॥
10387
वि न इन्द्र मृधो जहि नीचा यच्छ पृतन्यतः ।
यो अस्मॉं अभिदासत्यधरं गमया तमः ॥4॥
जन्म-भूमि हमको प्यारी है गाते हैं सदा उसी का गान ।
चन्दन- सम माटी है इसकी रहे शाश्वत इसका मान ॥4॥
10388
अपेन्द्र द्विषतो मनोSप जिज्यासतो वधम् ।
वि मन्योः शर्म यच्छ वरीयो यवया वधम् ॥5॥
अहित हमारा जो करता है वह भी सुख सम्पन्न रहे ।
कभी भी कोई दुख न पाए और न कोई कष्ट सहे ॥5॥
अहित हमारा जो करता है वह भी सुख सम्पन्न रहे ।
ReplyDeleteकभी भी कोई दुख न पाए और न कोई कष्ट सहे ॥
आप का कार्य वन्दनीय है, इसका अनुवाद कविता में करना ....
शायद यह अपनी तरह का पहला प्रयास होगा !
प्रणाम !
वर्षा के देव, ऊर्जा चक्र की कड़ी..
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