[ऋषि-प्रचेता आङ्गिरस ।देवता-दुःस्वप्ननाशन।छंद-अनुष्टुप,त्रिष्टुप,पंक्ति।]
10447
अपेहि मनसस्पतेSप क्राम परश्चर ।
परो निऋर्त्या आ चक्ष्व बहुधा जीवतो मनः॥1॥
मनोबल ऊँचा रहे हमारा शुभ हो ध्येय शुभ ही चिन्तन हो ।
धर्म अर्थ और काम मोक्ष से परिपूरित अपना जीवन हो ॥1॥
10448
भद्रं वै वरं वृणते भद्रं युञ्जन्ति दक्षिणम् ।
भद्रं वैवस्वते चक्षुर्बहुत्रा जीवतो मनः॥2॥
हे यम हम विनती करते हैं सदा श्रेष्ठ पथ पर ही जायें ।
मन के हों आयाम अनेकों विविध क्षेत्र में यश हम पायें ॥2॥
10449
यदाशसा निःशसाभिशसोपारिम जाग्रतो यत्स्वपन्तः ।
अग्निर्विश्वान्यप दुष्कृतान्यजुष्टान्यारे अस्मद्दधातु ॥3॥
बने रहें हम आशा- वादी निराशा अपने निकट न आए ।
हम सुषुप्त हों या हों जागृत त्रुटि से भी त्रुटि हो न जाए ॥3॥
10450
यदिन्द्र ब्रह्मणस्पतेSभिद्रोहं चरामसि ।
प्रचेता न आङ्गिरसो द्विषतां पात्वंहसः ॥4॥
अनजान में कोई भूल हुई हो हे प्रभु हमें क्षमा कर देना ।
हम भी तो सामान्य मनुज हैं त्रुटि बिसरा के अपना लेना॥4॥
10451
अजैष्माद्यासनाम चाभूमानागसो वयम् ।
जाग्रतत्स्वप्नःसङ्कल्पः पापो यं द्विष्मस्तं स ऋच्छतु यो नो द्वेष्टि तमृच्छतु ॥5॥
हम विजयी हैं सदा रहेंगे हे प्रभु देना ऐसा ज्ञान ।
यश वैभव उपलब्ध हमें हो नित निज संस्कृति का हो भान॥5॥
10447
अपेहि मनसस्पतेSप क्राम परश्चर ।
परो निऋर्त्या आ चक्ष्व बहुधा जीवतो मनः॥1॥
मनोबल ऊँचा रहे हमारा शुभ हो ध्येय शुभ ही चिन्तन हो ।
धर्म अर्थ और काम मोक्ष से परिपूरित अपना जीवन हो ॥1॥
10448
भद्रं वै वरं वृणते भद्रं युञ्जन्ति दक्षिणम् ।
भद्रं वैवस्वते चक्षुर्बहुत्रा जीवतो मनः॥2॥
हे यम हम विनती करते हैं सदा श्रेष्ठ पथ पर ही जायें ।
मन के हों आयाम अनेकों विविध क्षेत्र में यश हम पायें ॥2॥
10449
यदाशसा निःशसाभिशसोपारिम जाग्रतो यत्स्वपन्तः ।
अग्निर्विश्वान्यप दुष्कृतान्यजुष्टान्यारे अस्मद्दधातु ॥3॥
बने रहें हम आशा- वादी निराशा अपने निकट न आए ।
हम सुषुप्त हों या हों जागृत त्रुटि से भी त्रुटि हो न जाए ॥3॥
10450
यदिन्द्र ब्रह्मणस्पतेSभिद्रोहं चरामसि ।
प्रचेता न आङ्गिरसो द्विषतां पात्वंहसः ॥4॥
अनजान में कोई भूल हुई हो हे प्रभु हमें क्षमा कर देना ।
हम भी तो सामान्य मनुज हैं त्रुटि बिसरा के अपना लेना॥4॥
10451
अजैष्माद्यासनाम चाभूमानागसो वयम् ।
जाग्रतत्स्वप्नःसङ्कल्पः पापो यं द्विष्मस्तं स ऋच्छतु यो नो द्वेष्टि तमृच्छतु ॥5॥
हम विजयी हैं सदा रहेंगे हे प्रभु देना ऐसा ज्ञान ।
यश वैभव उपलब्ध हमें हो नित निज संस्कृति का हो भान॥5॥
आभार!
ReplyDeleteहो निर्भय हम, दूर हटे तम,
ReplyDeleteश्वासों में उतरे नित यौवन।