[ऋषि - इट भार्गव । देवता-इन्द्र । छन्द- गायत्री ।]
10478
त्वं त्यमिटतो रथमिन्द्र प्रावः सुतावतः ।
अशृणोः सोमिनो हवम् ॥1॥
ज्ञानी गृहस्थ और सज्जन के हे इन्द्र देव तुम रक्षक हो ।
सोम - युक्त स्तोत्रों को तुम सुनने के अति इच्छुक हो ॥1॥
10479
त्वं मखस्य दोधतः शिरोSव त्वचो भरः ।
अगच्छः सोमिनो गृहम् ॥2॥
शुभ-कर्म विरोध तुम्हें नहीं भाता ऐसे जन से रहते हो दूर ।
पर जो कल्याण कार्य करता है सहयोग उसे करते भरपूर ॥2॥
10480
त्वं त्यमिन्द्र मर्त्यमास्त्रबुध्नाय वेन्यम् ।
मुहुः श्रथ्ना मनस्यवे ॥3॥
विद्वानों के तुम शुभ-चिन्तक हो आडम्बर के घोर विरोधी हो ।
आपस में द्वेष जो करते हैं तुम उनके प्रतिरोधी हो ॥3॥
10481
त्वं त्यमिन्द्र सूर्यं पश्चा सन्तं पुरस्कृधि ।
देवानां चित्तिरो वशम् ॥4॥
जब सन्ध्या - देवी आती हैं और अन्धकार हो जाता है ।
फिर पुनः सुबह सूर्योदय होता पुनर्नवा जग हो जाता है ॥4॥
10478
त्वं त्यमिटतो रथमिन्द्र प्रावः सुतावतः ।
अशृणोः सोमिनो हवम् ॥1॥
ज्ञानी गृहस्थ और सज्जन के हे इन्द्र देव तुम रक्षक हो ।
सोम - युक्त स्तोत्रों को तुम सुनने के अति इच्छुक हो ॥1॥
10479
त्वं मखस्य दोधतः शिरोSव त्वचो भरः ।
अगच्छः सोमिनो गृहम् ॥2॥
शुभ-कर्म विरोध तुम्हें नहीं भाता ऐसे जन से रहते हो दूर ।
पर जो कल्याण कार्य करता है सहयोग उसे करते भरपूर ॥2॥
10480
त्वं त्यमिन्द्र मर्त्यमास्त्रबुध्नाय वेन्यम् ।
मुहुः श्रथ्ना मनस्यवे ॥3॥
विद्वानों के तुम शुभ-चिन्तक हो आडम्बर के घोर विरोधी हो ।
आपस में द्वेष जो करते हैं तुम उनके प्रतिरोधी हो ॥3॥
10481
त्वं त्यमिन्द्र सूर्यं पश्चा सन्तं पुरस्कृधि ।
देवानां चित्तिरो वशम् ॥4॥
जब सन्ध्या - देवी आती हैं और अन्धकार हो जाता है ।
फिर पुनः सुबह सूर्योदय होता पुनर्नवा जग हो जाता है ॥4॥
प्रकृति कर्म में सभी सहायक
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