[ऋषि- इन्द्राणी । देवता- उपनिषत् । छन्द- अनुष्टुप-पङ्क्ति ।]
10347
इमां खनाम्योषधिं वीरुधं बलवत्तमाम् ।
यया सपत्नीं बाधते यया संविन्दते पतिम्॥1॥
जीवन- दायिनी ये औषधियॉ तन-मन का पोषण करती हैं ।
अधिकतर लता-मयी औषधियॉ रूप-राशि वर्धित करती हैं॥1॥
10348
उत्तान - पर्णे सुभगे देवजूते सहस्वति ।
सपत्नीं मे परा धम पतिं मे केवलं कुरु ॥2॥
हे उत्तान - पर्ण औषधियॉ रूपवती तुम मुझे बना दो ।
प्रसन्न रख सकूँ अपने पति को ऐसा रूप और गुण दे दो ॥2॥
10349
उत्तराहमुत्तर उत्तरेदुत्तराभ्यः ।
अथा सपत्नी या ममाधरा साधराभ्यः ॥3॥
हे सञ्जीवनी औषधि देवी तुम मुझे श्रेष्ठ-उत्कृष्ट बनाओ ।
मेरे भीतर के षड्-रिपु को शीघ्राति-शीघ्र तुम दूर भगाओ ॥3॥
10350
नह्यस्या नाम गृभ्णानि नो अस्मिन्रमते जने ।
परामेव परावतं सपत्नीं गमयामसि ॥4॥
मैं पति की प्यारी बन जाऊँ पाऊँ उनका पावन प्यार ।
जनम-जनम तक साथ रहें कभी भी कम न हो यह ज्वार॥4॥
10351
अहमस्मि सहमानाथ त्वमसि सासहिः ।
उभे सहस्वती भूत्वी सपत्नीं मे सहावहै ॥5॥
हे देवी तुम भी साथ निभाना पति-परमेश्वर हों न दूर ।
तुम समर्थ हो मुझे भी देना पिया-प्रीत पाऊँ भर-पूर ॥5॥
10352
उप तेSधां सहमानामभि त्वाधां सहीयसा ।
मामनु प्र ते मनो वत्सं गौरिव धावतु पथा वारिव धावतु ॥6॥
सौन्दर्य-स्वामिनी मैं बन जाऊँ ऐसा सुन्दर देना रूप ।
रूप के संग मधुरता देना अक्षय हो सौन्दर्य- अनूप ॥6॥
10347
इमां खनाम्योषधिं वीरुधं बलवत्तमाम् ।
यया सपत्नीं बाधते यया संविन्दते पतिम्॥1॥
जीवन- दायिनी ये औषधियॉ तन-मन का पोषण करती हैं ।
अधिकतर लता-मयी औषधियॉ रूप-राशि वर्धित करती हैं॥1॥
10348
उत्तान - पर्णे सुभगे देवजूते सहस्वति ।
सपत्नीं मे परा धम पतिं मे केवलं कुरु ॥2॥
हे उत्तान - पर्ण औषधियॉ रूपवती तुम मुझे बना दो ।
प्रसन्न रख सकूँ अपने पति को ऐसा रूप और गुण दे दो ॥2॥
10349
उत्तराहमुत्तर उत्तरेदुत्तराभ्यः ।
अथा सपत्नी या ममाधरा साधराभ्यः ॥3॥
हे सञ्जीवनी औषधि देवी तुम मुझे श्रेष्ठ-उत्कृष्ट बनाओ ।
मेरे भीतर के षड्-रिपु को शीघ्राति-शीघ्र तुम दूर भगाओ ॥3॥
10350
नह्यस्या नाम गृभ्णानि नो अस्मिन्रमते जने ।
परामेव परावतं सपत्नीं गमयामसि ॥4॥
मैं पति की प्यारी बन जाऊँ पाऊँ उनका पावन प्यार ।
जनम-जनम तक साथ रहें कभी भी कम न हो यह ज्वार॥4॥
10351
अहमस्मि सहमानाथ त्वमसि सासहिः ।
उभे सहस्वती भूत्वी सपत्नीं मे सहावहै ॥5॥
हे देवी तुम भी साथ निभाना पति-परमेश्वर हों न दूर ।
तुम समर्थ हो मुझे भी देना पिया-प्रीत पाऊँ भर-पूर ॥5॥
10352
उप तेSधां सहमानामभि त्वाधां सहीयसा ।
मामनु प्र ते मनो वत्सं गौरिव धावतु पथा वारिव धावतु ॥6॥
सौन्दर्य-स्वामिनी मैं बन जाऊँ ऐसा सुन्दर देना रूप ।
रूप के संग मधुरता देना अक्षय हो सौन्दर्य- अनूप ॥6॥
ये प्रार्थनायें निश्चय ही पूरी करना देव।
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