Tuesday, 1 October 2013

शरद

पुण्य - पथ के पथिक- पावन ने सुपथ यह ऋतु दिखाई
श्लोक - शाश्वत गुनगुनाती शुभ्र - शुचितर शरद  आई ॥

सरित सर के सलिल निर्मल सत्पुरुष के शुभ्र मन सम
कास-कुसुम- चँवर- डुलाते शरद स्वागत में मनोरम ।
वसुधा विमल-जल में नहाई शुभ्र-शुचितर शरद आई ॥

तुहिनकण में मुस्कुराता शशि-किरण का चपल यौवन
काम - शर  हैं  शस्त्र  उसके  आखेट  ही उसका है  धन ।
विनयावनत  में  है भलाई  शुभ्र -शुचितर  शरद आई ॥

नील- नभ  आतुर  धरा  पर  निज हृदय उत्सर्ग करता
ज्योत्स्ना अगणित धरा पर निछावर पलपल है करता।
मुग्धा - मधुर  शरदा  सुहाई शुभ्र -शुचितर शरद आई ॥

कुमुद सर - पर है सुशोभित शशी नभ - पर मुस्कुराता
रश्मि  उसकी  खिलखिलाती  बावरा  बरबस  बनाता । 
समष्टि  की शुभ दृष्टि भाई  शुभ्र - शुचितर शरद आई ॥

विविध - वर्णा सुमन - सुन्दर पवन- प्रमदा- प्रेम- पूर्णा
मंद - मदतर डग  है भरती सुरभि - संग है भार- दूना ।
प्रीति - पूँजी - परम  पाई  शुभ्र - शुचितर  शरद  आई ॥

ब्रह्म- रव नित - प्रति सुनाती अ‍ॅध - उर के तम मिटाती
वेदवत् - आचरण  करती  साम  के  वह  गीत   गाती।
शरद  में संस्कृति  समाई  शुभ्र - शुचितर  शरद आई ॥

सरसिज सुमन से सर सजे हैं कमलकेसर अलि बिछौना 
पन्ना - पलंग पर पद्म पौढे सलिल सुख - कर है सलोना।
समता  सरोवर  में  समाई  शुभ्र - शुचितर  शरद आई ॥

शकुन्तला शर्मा , भिलाई { छ. ग. }

4 comments:

  1. सुन्दरतम शब्द प्रवाह, शरद की शोभा को उभार गया।

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  2. लयबद्ध शब्दों का सौंदर्य अनूठा है !

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  3. शरद स्वागत गीत पसंद आया , आपकी कलम से निकली हर रचना , हिंदी के लिए उपहार बने , यही कामना है !

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